बचपन एक ऐसा एहसास है जहाँ न कोई चिंता व रोटी की फिकर होती है। हर इंसान यही चाहता है मुझे अपना बचपन लौटा दो । पर क्या यह पूर्ण रूप से सही है? तस्वीर के पीछे का एक भयानक पहलू यह भी है की अशिक्षा और ग़रीबी के चलते हमारे देश में बहुत से ऐसे बच्चे हैं जिनका बचपन ब्लैक होल में समा गया है। आज के युग में बाल शोषण शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक दुरव्यवहार रूप में पनप रहा है। बाल शोषण के अनेक रूप हो सकते हैं जेसे बाल श्रम, बाल मज़दूरी, बाल विवाह, बच्चो का अपहरण आदि। जहाँ उनके पड़ने की उमर है वहाँ उनके हाथो में काम थमा दिया जाता है। जैसे ढाबों पर, चाय के ठेलों पर, घरलू कार्य, जूते चमकाने का, धार्मिक स्थलो पर भीख माँगने का, अवेध काम आदि थमा दिया जाता है। छोटे बच्चो को अक्सर सड़को पर बेचते हुए भी देखा जाता है और कहीं कहीं तो लोग बच्चों से उनकी भी ज़्यादा वजन की चीज़े उठवाते हैं। क्या यह सही है? कहाँ गया उनका बचपन जो उनके खेलने कूदने व पड़ने लिखने की उमर है। वही बच्चों के वर्तमान ओर भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है। ऐसे बच्चे अपने बचपन से नफ़रत करने लगते हैं। |
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