Dialogue

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Lesson Transcript

किस्मत
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान रिलीज़ हुई फिल्म क़िस्मत बाक्स आफिस पर एक बड़ी सफलता साबित हुई जो भारत की सबसे लंबी (तीस साल तक!) चलने वाली फिल्म बनी| ज्ञान मुखर्जी द्वारा निर्देशित व अशोक कुमार, मुमताज शांति व शाहनवाज़ द्वारा अभिनीत 1943 की यह फिल्म ऐसी पहली फिल्म थी जिसका मुख्य किरदार संदिग्ध चरित्र का दिखाया गया था|
कुमार एक अनाथ के किरदार में थे जो बड़ा हो कर जेबकतरा बनता है व जीवन में ऊंचाईयाँ हासिल करना चाहता है| उसके जीवन में तब बदलाव आता है जब उसकी भेंट मुमताज़ शांति से होती है, जिसके प्रेम से वह सुधरने लगता है| कुमार पर एक झूठा इल्ज़ाम लग जाता है, कोर्ट में केस चलता है और भाग्य से वह बच जाता है|
इस फिल्म में छिपा गहरा अर्थ यह है क़िस्मत की किसी के भी जीवन में अहम भूमिका रहती है और यही लोगों के बीच असमानता का सबसे बड़ा कारण भी है| कुमार व शांति की प्रेम कहानी की पृष्ठभूमि में पीठवाला नाम के एक पूर्व थियेटर मालिक के अन्याय का किस्सा भी चलता रहता है| अपने लालच की वजह से वह अपनी बेटी का जीवन खराब कर बैठता है, और समय के साथ उसे नए थियेटर मालिक इंद्रजीत के हाथों बुरे व्यवहार का सामना भी करना पड़ता है| अपनी चोरी की कला का प्रयोग करते हुए कुमार का किरदार शेखर, इंद्रजीत से पीठवाला के अपमान का बदला लेता है| परंतु यहाँ कहानी फिर एक विचित्र मोड़ लेती है और दर्शक यह सोचते रह जाते हैं कि कौन सा किरदार बुरा है और कौन भला| फिल्म का अंत सभी बॉलीवुड फिल्मों की तरह ‘इसके बाद सब भला होता है’ के सिद्धान्त के साथ होता है|
किस्मत को लोग एक अनिवार्य बॉलीवुड क्लासिक मानते हैं, हालांकि कुछ आलोचक कहते हैं की हिंसा व अपराध का महिमामंडन उस समय के नवयुवकों के लिए कोई अच्छा उदाहरण नहीं प्रस्तुत कर पाया था| इसके संगीतकार अनिल बिस्वास थे व इसे बॉम्बे टॉकीज़ के बैनर तले रिलीज़ किया गया।

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